Saturday 1 June 2013

आज मुझे फिर कुछ याद आया
हम भी कभी भरी दोपहरी में स्कूल ग्राउंड में ऐसे ही खेल  करते थे .

Wednesday 20 March 2013

Monday 21 September 2009

ऐसा कहीं मंजर नही देखा

तुमने कभी ऐसा कहीं, मंजर नहीं देखा
कश्ती के मुसाफिर ने , समंदर नहीं देखा
मैं अपनों में अन्जान बना ,जी ही रहा हूं
आँखों में रहा, दिल में उतर कर नहीं देखा

बे वक्त अगर जाऊँगा , सब चौंक पडेंगे

सालों से मैंने दिन में अपना घर नहीं देखा
ये फूल मुझे कोई, विरासत में नहीं मिले

तुमनेt मेरा कांटो भरा बिस्तर नहीं देखा
पत्थर मुझे कहता है ,मुझे चाहने वाला
मै मोम हूँ, उसने मुझे छूकर नहीं देखा
अब रात है, मै फ़िर भी देखो जाग रहा हूँ
मैंने कभी रातों को भी ,सो कर नहीं देखा ।











Saturday 5 September 2009

अध्यापक दिवस पर


कोई सवाल मूर्खतापुरण नहीं होता , हालांकि कुछ मूर्ख लोग होते हैं जो कभी सवाल नहीं करते ऐसे लोगों को अगर सवाल करना भी पड़े तो वो घबरा जाते हैं तथा घबरा कर अनाप शनाप पूछना शुरू कर देते हैं , अध्यापक का कर्तव्य है की वो ऐसे लोगों को भी संतुस्ट करे।

आधुनिक मानव की दुविधा यह है की वो जीवन से निराश है, किंतु मरना भी नहीं चाहता। जीवित रहने की मूलवृती ही हमें उम्मीद बंधाती है। जिस शत्रु से हमें लड़ना है वो पूंजीवाद अथवा साम्यवाद नहीं है बल्कि हमारी अपनी बुराई है , अपनी आध्यात्मिक अन्धता है , सत्ता के प्रति हमारी आसक्ति और प्रभुत्व के लिये हमारी वासना है।

आज अध्यापक दिवस के अवसर पर हम अध्यापकों को यह प्रण लेना चाहिए की हम समाज में फैली इस बुराई का अंत करेंगे